Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 370
________________ करित्ता जमगसमगं चत्तारि (कर) संकृ अव्यय (चउ) 2/2 वि करके एक साथ चारों वि अव्यय पाए नीणेइ नीणेत्ता पैरों को बाहर निकालता है बाहर निकालकर ता तब वाक्यालंकार उत्कृष्ट कूर्मगति से दौड़ते उक्किट्ठाए कुम्मगईए वीइवयमाणे वीइवयमाणे जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव (पाअ) 2/2 (नीण) व 3/1 सक (नीण) संकृ अव्यय अव्यय (उक्किट्ठ) 3/1 वि [(कुम्म)-(गइ) 3/1] [(वीइ-वय) वकृ 1/1] [(वीइ-वय) वकृ 1/1] अव्यय [(मयंगतीर)-(दह) 1/1] अव्यय (उवागच्छ) व 3/1 सक (उवागच्छ) संकृ [(मित्त)-(नाइ)-(नियग)(सयण)-(सम्बन्धि)-(परियण) 3/1] दौड़ते जहाँ मृतगंगातीर नामक हृद (था) वहाँ पहुँचता है पहुँचकर मित्र, समान जाति, आत्मीय स्वजन, सम्बन्धी (और) परिजनों का उवागच्छन् उवागच्छित्ता मित्त-नाइ-नियगसयण-सम्बन्धिपरियणेणं साथ अव्यय (अभिसमन्नागय) 1/1 वि प्राप्त सद्धिं अभिसमन्नागए यावि होत्था अव्यय पादपूरक (हो) भू 3/1 अक हुआ 15. एवामेव समणाउसो अव्यय [(समण)+ (आउसो)] [(समण)-(आउस) 8/1] (ज) 1/1 स इसी प्रकार हे आयुष्मान श्रमण! प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 361 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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