Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अक्खु
जाव
करित्तए
13.
तए
णं
ते
पावसियालया
दोच्चं
पि
तच्चं
पि
जाव
नो
संचाएंति
तस्स
कुम्मगस्स
किंचि
आबाहं
वा
पबाहं
वा
विबाहं
वा
उप्पारत्तए
छविच्छेयं
वा
करित्तए
ताहे
संता
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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[(अ)- (क्खुडंति) व 3 / 2 सक ]
अव्यय
(कर) हेकृ
अव्यय
तत्पश्चात्
अव्यय
पादपूरक
(त) 1/2 सवि
वे
[(पाव) - (सियाल) 'अ' स्वार्थिक 1/2 ] पापी सियार
अव्यय
दूसरी बार
अव्यय
और
अव्यय
अव्यय
अव्यय
अव्यय
( संचाय) व 3 / 2 अक
(त) 4 / 1 सवि
(कुम्म) 'ग' स्वार्थिक 4/1
अव्यय
( आबाहा) 2 / 1
अव्यय
(पबाहा ) 2 / 1
अव्यय
(विबाह ) 2 / 1 वि
अव्यय
(उप्पाअ) हेकृ
(छविच्छेय) 2/1
अव्यय
(कर) हेकृ
अव्यय
(संत) भूकृ 1 / 2 अनि
टूटते नहीं हैं
किन्तु
करने के लिए
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तीसरी बार
और
किन्तु
नहीं
समर्थ होते हैं (हुए)
उस
कछुए
थोड़ी
मानसिक पीड़ा
के लिए
अथवा
विशेष पीड़ा
अथवा
सन्ताप
अथवा
उत्पन्न करने के लिए
चमड़ी छेदन
और
करने के लिए
तब
थके हुए
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