Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 367
________________ परलोए (परलोअ) 7/1 परलोक में वि अव्यय भी अव्यय और N अव्यय पादपूरक पाता है (पाते हैं) बहुत आगच्छइ बहूणि दंडणाणि अणुपरियदृइ जहा दण्ड परिभ्रमण करता है (आगच्छ) व 3/1 सक (बहु) 2/2 वि (दंडण) 2/2 (अणुपरियट्ट) व 3/1 सक अव्यय (कुम्म) 'अ' स्वार्थिक 1/1 [(अ)+ (गुत्त) + (इंदिए)] [(अ)-(गुत्त)-(इंदिअ) 1/1 वि] जैसे कुम्मए अगुतिंदिए कछुआ इन्द्रियों का गोपन नहीं करनेवाला 12. तए अव्यय तत्पश्चात् पावसियालया जेणेव वह दोच्चए कुम्मए तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता अव्यय पादपूरक [(पाव)-(सियाल) 'अ' स्वार्थिक 1/2] पापी सियार अव्यय जहाँ (त) 1/1 स (दोच्च) 'अ' स्वार्थिक 1/1 वि दूसरा (कुम्म) 'अ' स्वार्थिक 1/1 कछुआ (था) अव्यय वहाँ (उवागच्छ) व 3/2 सक पहुँचे (उवागच्छ) संकृ पहुँचकर (त) 2/1 सवि उस (कुम्म) य स्वार्थिक 2/1 कछुए को अव्यय चारों तरफ से अव्यय सब दिशाओं में (उव्वत्त) व 3/2 सक उलटा करते हैं अव्यय जब तक (दंत) 3/2 दाँतों से कुम्मयं सव्वओ समंता उव्वत्तेति जाव दंतेहिं 358 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384