Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 365
________________ पावसियालया पापी सियार तेणं उस कुम्मएणं गीवं णीणियं पासंति पासित्ता सिग्धं चवलं कछुए के द्वारा गर्दन को बाहर निकाली गयी देखते हैं देखकर जल्दी से स्फूर्तिपूर्वक तेजी से आवेशपूर्वक नाखुनों से दाँतों से कपाल अलग करते हैं अलग करके तुरियं (त) 1/2 सवि (पावसियाल) 'य' स्वार्थिक 1/2 (त) 3/1 सवि (कुम्म) 'अ' स्वार्थिक 3/1 (गीवा) 2/1 (णीणिय) भूकृ 2/1 अनि (पास) व 3/2 सक (पास) संकृ (सिग्घ) 2/1 क्रिवि (चवल) 2/1 क्रिवि (तुरिय) 2/1 क्रिवि (चंड) 2/1 क्रिवि (नह) 3/2 (दंत) 3/2 (कवाल) 2/1 (विहाड) व 3/2 सक (विहाड) संकृ (त) 2/1 सवि (कुम्म) 'ग' स्वार्थिक 2/1 (जीविअ) 5/1 वि (ववरोव) व 3/2 सक (ववरोव) संकृ (मंस) 2/1 अव्यय (सोणिय) 2/1 अव्यय (आहार) व 3/2 सक चंडं नहेहिं दंतेहिं कवालं विहाडेंति विहाडित्ता कुम्मगं जीवियाओ ववरोवेंति ववरोवित्ता मंसं कछुए को जीवन से रहित करते हैं जीवनरहित करके माँस का और रुधिर का सोणियं और आहार करते हैं आहारेन्ति 11. एवामेव समणाउसो अव्यय इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमण! [(समण)+(आउसो)] [(समण)-(आउस) 8/1] 356 प्राकत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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