Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 356
________________ आहारत्थी [(आहार)+ (अत्थी) [(आहार)-(अत्थि) 1/2 वि (आहार) 2/1 (गवेस) वकृ 1/2 आहारं गवेसमाणा आहार के इच्छुक आहार को खोजते हुए धीरे अव्यय अव्यय धीरे सणियं सणियं उत्तरंति तस्सेव बाहर निकलते हैं (थे) उस (उत्तर) व 3/2 सक [(तस्स)+ (एव)] तस्स (त) 6/1 सवि एव (अव्यय) (मयंगतीरद्दह) 6/1 (परिपेरंत) 3/1 मयंगतीरद्दहस्स परिपेरतेणं सव्वओ अव्यय अव्यय समंता परिघोलेमाणा परिघोलेमाणा मृतगंगातीरहद की सीमा में सब ओर से चारों ओर फिरते हुए विचरण करते हुए निर्वाह के साधन को बनाते हुए गमन करते हैं (थे) (परिघोल) वकृ 1/2 (परिघोल) वकृ 1/2 (वित्ति) 2/1 (कप्प) वकृ 1/2 (विहर) व 3/2 सक वितिं कप्पेमाणा विहरंति 5. तयाणंतरं अव्यय उसके पश्चात् अव्यय और PF पादपूरक पावसियालगा आहारत्थी अव्यय (त) 1/2 सवि [(पाव)-(सियालग) 1/2] [(आहार)+ (अत्थी)] [(आहार)-(अत्थि) 1/1] अव्यय (आहार) 2/1 पापी शृगाल आहार के इच्छुक पूर्वोक्त आहार को जाव आहारं कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 347 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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