Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 360
________________ चालेन्ति घट्टेन्ति फंदेन्ति खोभेन्ति नहेहिं आलुंपंति दंतेहि (चाल) व 3/2 सक (घाट्टन्ति-घट्ट) व 3/2 सक प्रे. (फान्देन्ति-फंद) व 3/2 सक प्रे. (खोभ) व 3/2 सक प्रे. (नह) 3/2 (आलुंप) व 3/2 सक (दंत) 3/2 अव्यय चलाते हैं हिलाते हैं फरकाते हैं लोटपोट करते हैं नाखुनों से फाड़ते हैं दाँतों से और खींचते हैं अक्खोडेन्ति (अक्खोड) व 3/2 सक अव्यय नहीं चेव अव्यय परन्तु अव्यय संचाएंति तेसिं वाक्यालंकार समर्थ होते हैं उन कछुओं के शरीर के लिए मानसिक पीड़ा (संचाअ) व 3/2 अक (त) 6/2 सवि (कुम्म) 'ग' स्वार्थिक 6/2 (सरीर) 4/1 (आबाहा) 2/1 कुम्मगाणं सरीरस्स आबाहं वा अव्यय पबाहं विशेष पीड़ा वा या वाबाहं सन्ताप वा या (पबाहा) 2/1 अव्यय (वाबाहा) 2/1 अव्यय (उप्पाअ) हेक (छविच्छेय) 2/1 अव्यय (कर) हेक उप्पाएत्तए छविच्छेयं उत्पन्न करने के लिए चमड़ी के छेदन वा. करेत्तए करने के लिए अव्यय तत्पश्चात् वाक्यालंकार अव्यय (त) 1/2 सवि प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 351 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384