Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 358
________________ पासित्ता जेणेव देखकर जहाँ (पास) संकृ अव्यय (त) 1/2 सवि (कुम्म) 'अ' स्वार्थिक 1/2 कछुए कुम्मए तेणेव पहारेत्थ अव्यय वहाँ (पहार) भू 3/2 सक (गमण-गमणा) 4/1 निश्चय किया जाने के लिए गमणाए अव्यय तत्पश्चात् डरे हुए अव्यय पादपूरक (त) 1/2 सवि कुम्मगा (कुम्म) 'ग' स्वार्थिक 1/2 कछुए पावसियालए [(पाव) वि-(सियालअ) 2/2]] पापी सियारों को एज्जमाणे (एज्ज) वकृ 2/2 आते हुए पासंति (पास) व 3/2 सक देखते हैं पासित्ता (पास) संकृ देखकर भीता (भीअ) भूकृ 1/2 अनि आतंकित तत्था (तत्थ) भूकृ 1/2 अनि तसिया (तसिय) भूकृ 1/2 अनि त्रासित उव्विग्गा (उव्विग्ग) 1/2 वि घबराए हुए (थे) संजातभया [(संजात) भूक अनि-(भय) 5/1] उत्पन्न हुए भय के कारण हत्थे (हत्थ) 2/2 हाथों के अव्यय और पाए (पाअ) 2/2 पैरों को अव्यय गीवाओ (गीवा) 2/2 गर्दन को अव्यय सएहिं (स) 'अ' स्वार्थिक 3/2 अपने कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) और और प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 349 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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