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अणुपुव्व-सुजायवप्प-गंभीर-सीयलजले अच्छ-विमलसलिल-पलिच्छन्ने
[(अणुपुव्व) क्रिवि-(सुजाय)-(वप्प)(गंभीर)-(सीयल)-(जल) 1/1] [(अच्छ)-(विमल)(सलिल)-(पलिच्छन्न) 1/1 वि]
क्रमश: तट सुन्दर, ठण्डा व गहरा जल स्वच्छ निर्मल जल रोका हुआ (था)
तत्थ
अव्यय
उसमें वाक्यालंकार
अव्यय
बहूणं मच्छाण
(बहु) 6/2 वि (मच्छ) 6/2
अनेक मछलियों
अव्यय
तथा
कच्छपाण
(कच्छप) 6/2 अव्यय
कछुओं और घड़ियालों और
गाहाण
(गाह) 6/2
अव्यय
मगराण
(मगर) 6/2
मगरों
[AT
अव्यय
तथा सुंसुमाराण (सुंसुमार) 6/2
जलचर जीवों के अव्यय
तथा सइयाण (सइय) 6/2 वि
सैकड़ों अव्यय
तथा साहस्सियाण (साहस्सिय) 6/2 वि
सहस्त्रों अव्यय
तथा सयसाहस्सियाण (सयसाहस्स) 6/2 वि
लाखों अव्यय
और जूहाई
(जूह) 1/2 निभाई (निब्भय) 1/2
भयरहित निरुव्विग्गाई [(निर)+ (उब्विग्गाई)]
उद्वेग-रहित [(निर)-(उव्विग्ग) 1/2] (सुह) 2/1 क्रिविअ
प्रसन्नतापूर्वक 1. कभी-कभी संज्ञा शब्द की द्वितीया विभक्ति का एकवचन रूप भी क्रिया विशेषण के रूप में
प्रयुक्त होता है। संस्कृत व्याकरण, डॉ. प्रीति प्रभा गोयल। 344
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
समूह
सुह
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