Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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1.
जंबू
तेणं'
कालेणं'
तेणं'
समएणं'
वाणारसी
नामं
णयरी
होत्था
तीसे
वाणरसीए
नयरीए
बहिया
उत्तर - पुरच्छिमे
दिसिभागे
गंगाए
महानदीए
मयंगतीरद्दहे
नामं
दहे
हत्था
1.
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
पाठ-13
कुम्मे
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(जंबु ) 8/1
(त) 3 / 1 सवि
(काल) 3 / 1
(त) 3 / 1 सवि
(समअ ) 3 / 1
( वाणारसी) 1 / 1
अव्यय
(णयरी) 1 / 1
(हो) भू 3 / 1 अक
(ती) 6/1 सवि
अव्यय
(वाणारसी) 6/1
(नयरी) 6 / 1
अव्यय
[ (उत्तर) - ( पुरच्छिम) 7 / 1]
(दिसिभाग) 7/1
(गंगा) 6 / 1
(महानदी) 6/1
(मयंगतीरद्दह ) 1/1
अव्यय
(दह) 1 / 1
(हो) भू 3 / 1 अक
हे जंबू!
उस
काल में
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उस
समय में
बनारस / वाणारसी
नामक
नगरी
थी
उस
वाक्यालंकार
वाणारसी
नगरी के
बाहर
उत्तर-पूर्व
दिशाभाग में
सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137)
गंगा
महानदी के
मृतगंगातीरहद
नामक
झील (जलाशय)
था
343
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