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किं विलंबेण
तुमं
आगओ
सि
सो
कहे
विवाहमहूस
चउरो
जामायरा
समागआ
ते
to
उ
भोयणरसलुद्धा
चिरं
ठिआवि
गंतुं
न
इच्छंत
तओ
जुत्तीए
सव्वे
निक्कासिआ
ते
एवं
कुडे
मणीरामो
तिलतेल्लेण
माहवो
भूसज्जाए
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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अव्यय
(facia) 3/1
(तुम्ह) 1 / 1 स
(आगअ ) भूकृ 1 / 1 अनि
(अस) व 2 / 1 अक
(त) 1 / 1 स
( कह) व 3 / 1 सक
[ (विवाह) - (महूसव) 7 / 1 ]
(उ) 1/2 वि
(जामायर) 1/2
( समागय) भूक 1 / 2 अनि
(त) 1/2 स
अव्यय
[ ( भोयण) - (रस) - (लुद्ध) 1 / 2 वि]
अव्यय
[(ठिअ) भूक 1/2 - (वि) अव्यय ] (गंतुं) हे अनि
अव्यय
( इच्छ) व 3 / 2 सक
अव्यय
(जुत्ति) 3/1 क्रिविअ
(सव्व) 1/2 स
(निक्कास ) भूकृ 1 / 2
(त) 1/2 स
अव्यय
[ ( वज्ज) - (कुड) 3 / 1]
( मणीराम ) 1 / 1
[(तिल) - (तेल्ल) 3 / 1]
( माहव) 1 / 1
[(भू) - (सज्जा) 3 / 1]
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क्यों
देर से
तुम
आए
हो
वह (उसने)
कहता है ( कहा )
विवाह महोत्सव में
चार
दामाद
आये थे
वे
वाक्यालंकार
भोजन रस के लोभी
चिरकाल तक
ठहरे, और
जाने के लिए
नहीं
इच्छा करते हैं
तब
युक्तिपूर्वक
सभी निकाले गए
इस प्रकार
कठोर की हुई रोटी से
मणीराम
तिल के तेल से
माधव
भू शय्या से
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