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जहाँ
द्वार खुला हुआ
वहाँ
जाओ
इस प्रकार
कहकर मौन से
हुआ/बैठा
तब
दोनों
समीप में स्थित
जत्थ
अव्यय उग्याडिअद्दारं
[(उग्घाड) भूकृ-(दार) 1/1] अस्थि
(अस) व 3/1 अक तत्थ
क्रिविअ गच्छेह
(गच्छ) विधि 2/2 सक एवं
अव्यय कहिऊण
(कह) संकृ मोणेण
(मोण) 3/1 थिओ
(थिअ) भूकृ 1/1 अनि तया
अव्यय
(त) 1/2 स दुण्णि
(दु) 1/2 समीवत्थिआए
[(समीव)+(अत्थियाए)]
[(समीव)-(अत्थिया) 7/1 वि तुरंगसालाए
[(तुरंग)-(साला) 7/1] गया
(गय) भूकृ 1/2 अनि तत्थ
क्रिविअ आत्थरणाभावे
[(आत्थरण)+ (अभावे)]
[(अत्थरण-आत्थरण)-(अभाव) 7/1] अईवसीयबाहिया' [(अईव)-(सीअ)
(वाहिअ(य)) 5/1] तुरंगमपिट्ठच्छाइआवरणवत्थं [(तुरंगम)+ (पिट्ठ)+ (अच्छाइ)+
(आवरण)+ (वत्थं)] [(तुरंगम)-(पिट्ठ)-(अच्छाइ) वि
(आवरण)-(वत्थ) 2/1] गहिऊण
(गह) संकृ भूमीए
(भूमि) 7/1 सुत्ता
(सुत्त) भूकृ 1/2 अनि तया
अव्यय विजयरामेण
(विजयराम) 3/1
घुड़साल में गये
वहाँ बिस्तर के अभाव में
अत्यन्त ठण्ड से रोगी होने के कारण घोड़े की पीठ पर ढकनेवाले आवरण वस्त्र को
ग्रहण करके भूमि पर सोये
तब
विजयराम
1.
कभी-कभी कारण अर्थ में पंचमी विभक्ति का प्रयोग भी पाया जाता है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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