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34.
दिक्खाभिमुहो
दीक्षा के अभिमुख (हैं)
राया
पुत्तय
हे पुत्र!
भी
[(दिक्खा)+ (अभिमुहो)] [(दिक्खा)-(अभिमुह) 1/1] (राय) 1/1 (पुत्त) 8/1 अव्यय (तुम्ह) 1/1 स अव्यय (वच्च) भवि 2/1 सक [(पइ)-(पुत्त)-(विरहिय) 1/1] अव्यय (क) 2/1 स [(सरणं)+(अहं)] सरणं (सरण) 2/1 अहं (अम्ह) 1/1 स (पव्वज्जा ) व 1/1 सक
वच्चिहिसि
पइ-पुत्तविरहिया
इह
जाओगे पति और पुत्र से विरहित (अब) यहाँ किसकी शरण को (शरण में)
सरणमहं
पव्वज्जामि
जाता हूँ (जाऊँगी)
35.
विञ्झगिरिमत्थए
[(विंझ)-(गिरि)-(मत्थअ) 7/1] अव्यय
वा
विन्ध्याचल के शिखर पर
और मलय पर्वत पर
मलए
(मलअ) 7/1
वा
अव्यय
तथा सागर के
सायरस्स वाऽऽसन्ने
तथा समीप
काऊण
पइट्ठाणं
(सायर) 6/1 [(वा)+(आसन्ने)] वा (अ)
आसन्ने (आसन्न) 7/1 (काऊण) संकृ अनि (पइट्ठाण) 2/1 (तुम्ह) 4/1 स अव्यय (आगम) भवि 1/1 सक (अम्ह) 1/1 स
करके स्थिति (को) तुम्हारे लिए निश्चय ही आऊँगा
आगमिस्से
व्याकरण के नियमानुसार यहाँ ‘आगमिस्सं' शब्द उचित प्रतीत होता है।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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