________________
12.
सीह-ऽच्छभल्लचित्तय-घणपायवगिरिवराउले
[(सीह)-(अच्छ)-(भल्ल)(चित्तय)-(घण) वि-(पायव)(गिरिवर)-(आउले) 7/1 वि] (रण्ण) 7/1
रणे
सिंह, रीछ, भालू, चीते
और सघन वृक्षों एवं पर्वतों से व्याप्त (वन) में जंगल में साथ तुम्हारे (आपके) रहते हैं (रहेंगे) करें
समयं
अव्यय
वसामो
कुणसु दयं असरणाणऽम्हं
(तुम्ह) 3/1 स (वस) व 1/2 सक (कुण) विधि 2/1 सक (दया) 2/1 [(असरणाण)+(अम्ह)] (असरण) 4/2 (अम्ह) 4/2 स
दया
अशरणों के लिए, हम
13.
आउच्छिऊण सुहडे सीयं भूयावगूहियं
अनुज्ञा लेकर सुभटों की (को) सीता को हाथों से आलिंगित की
(आउच्छ) संकृ (सुहड) 2/2 (सीया) 2/1 [(भूय+अवगृह)] [(भूय)-(अवगृह) भूक 2/1] (काउं) संकृ अनि (राम) 1/1 (उत्तर) व 3/1 सक (नई) 2/1 (गम्भीर) 2/1 [(लक्खण)-(समग्ण) 1/1]
काउं रामो
पकड़कर
राम
उत्तर
पार करते हैं
नई
नदी
गम्भीरं
गम्भीर लक्ष्मण के साथ
लक्खणसमग्गो
14.
राम
राम को
सलक्खणं
लक्ष्मण सहित
(राम) 2/1 [(स) वि-(लक्खण) 2/1] (त) 1/2 सवि [(पर) + (तीर)+ (अवट्ठिय)] [(पर)-(तीर)-(अवट्ठिय) 2/1 वि] (पलोअ) संकृ
परतीरावट्टियं
दूरवर्ती किनारे पर स्थित देखकर
पलोएउं
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
263
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org