________________
ससुरगेहवासीणं
चउजामायराणं
कहा
1.
कत्थवि
गामे
नरिंदस्स
रज्जसंतिकारगो
पुरोहिओ
आसि
तस्स
एगो
पुत्तो
पंच
य
ससुरगेहवासीणं चउजामायराणं कहा
कन्नगाओ
संति
तेण
चउरो
कन्नगाओ
विउसमाहणपुत्ताणं
परिणाविआओ
काई
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
पाठ-12
Jain Education International
[(ससुर) - (गेह) - (वासि ) 6 / 2 वि]
[ ( उ ) - (जामायर) 6 /2]
( कहा ) 1 / 1
अव्यय
( गाम) 7/1
( नरिंद) 6/1
[ (रज्ज) - (संति) - (कारग) 1 / 1 वि]
(पुरोहिअ ) 1/1
(अस) भू 3 / 1 अक
(त) 6 / 1 स
(एग ) 1 / 1 वि
(पुत्त) 1 / 1
(पंच) 1/2 वि
अव्यय
( कन्नगा) 1 / 2
(अस) व 3 / 2 अक
(त) 3 / 1 स
(चउ) 1/2 वि
(कन्नगा) 1/2
[ ( विउस) - (माहण) - ( पुत्त) 6 / 2 ]
(परिण + आवि) प्रे. भूक 1/2
अव्यय
For Private & Personal Use Only
ससुर के घर में रहनेवाले
चार दामादों की
कथा
किसी
ग्राम में
राजा
के
राज्य में शान्ति स्थापित
करनेवाला
पुरोहित
रहता था
उसके
एक
पुत्र
पाँच
और
कन्याएँ
हैं (थीं)
उसके द्वारा
चार
कन्याएँ
विज्ञ ब्राह्मण पुत्रों के (साथ)
विवाह करवा दी गई किसी समय
317
www.jainelibrary.org