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तीए
उत्तं
हे ससुर
धम्महीणमणुसस्स माणवभवो
पत्तो
(पत)
उसके द्वारा कहा गया हे ससुर! धर्महीन मनुष्य का मनुष्य भव प्राप्त किया हुआ भी प्राप्त नहीं किया हुआ ही क्योंकि सत् धर्म की क्रिया के द्वारा
1/
जा
वि
(ती) 3/1 स (उत्त) भूक 1/1 अनि (ससुर) 8/1 [(धम्महीण)-(मणुस) 6/1] [(माणव)-(भव) 1/1]
1/1 अनि अव्यय (अपत्त) भूकृ 1/1 अनि अव्यय अव्यय [(सद्धम्म)-(किच्चा) 3/2] (सहल) 1/1 वि (भव) 1/1 अव्यय (कअ) भूकृ 1/1 अनि (त) 1/1 स [(मणुस)-(भव) 1/1] (निप्फल) 1/1 वि अव्यय
अपत्तो एव जओ सद्धम्मकिच्चेहिं सहलो भवो
सफल
भव
न
नहीं
किया गया
वह
कओ सो मणुसभवो निष्फलो चिय
मनुष्य जन्म निरर्थक
तओ
अव्यय
उस कारण से
तुम्हारा
तुम्ह जीवणं
(तुम्ह) 6/1 स (जीवण) 1/1
जीवन
पि
अव्यय
धर्महीन
धम्महीणं सव्वं
सारा
गया
तेण
(धम्महीण) 1/1 (सव्व) 1/1 सवि (गय) भूक 1/1 अनि अव्यय (अम्ह) 3/1 स (कह) भूकृ 1/1 (अम्ह) 6/1 स
मए
इसीलिए मेरे द्वारा कहा गया
कहिअं
मम
मेरे
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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