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35.
दक्खिणदेसाभिमुहा चलिया भरहो
भरत
वि
भी
निययपुरहुत्तो
पत्तो
[(दक्खिण)-(देस)-(अभिमुह) 1/2 वि] दक्षिण देश के सम्मुख (चल) भूकृ 1/2
चल पड़े (भरह) 1/1 अव्यय [(नियय) वि-(पुर)-(हुत्त) 1/1 वि] अपने राज्य के सम्मुख (पत्त) भूक 1/1 अनि
पहुँच गया (कर) व 3/1 सक
करता है (करने लगा) (रज्ज) 2/1
राज्य (इन्द) 1/1 अव्यय
जैसे [(देव)-(नयरि) 7/1]
देवनगरी में
करेइ रज्ज
इन्दो
जह देवनयरीए
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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