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वडा अंतट्टिएण
ससुरेण सुआ लद्धभिक्खे
वार्ता भीतर बैठे हुए ससुर के द्वारा सुनी गई भिक्षा को प्राप्त
साहुमि
साधु के
गए
चले जाने पर
वह
(वट्टा) 1/1 [(अंत)-(ट्ठिअ) भूक 3/1 अनि] (ससुर) 3/1 (सुअ) भूकृ 1/1 अनि [(लद्ध) भूकृ अनि-(भिक्ख) 7/1] (साहु) 7/1 (गअ) भूकृ 7/1 अनि (त) 1/1 स अव्यय [(कोह)-(आउल) 1/1] (संजाअ) भूकृ 1/1 अनि अव्यय [(पुत्त)-(वहू) 1/1] (अम्ह) 2/1 स (उद्दिस्स) संकृ अनि अव्यय (जाअ) भूकृ 1/1 अनि
अत्यन्त
अईव कोहाउलो संजाओ जओ
क्रोध से व्याकुल
हुआ क्योंकि
पुत्तवहु
पुत्रवधु मुझको लक्ष्य करके
उद्दिस्स
नहीं
जाओ
त्ति
अव्यय
उत्पन्न हुआ इस प्रकार कहती है
कहेइ
रुट्टो
रूठ गया
सो
पुत्तस्स
कहणत्थं
(कह) व 3/1 सक (रुट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (त) 1/1 स (पुत्त) 4/1 (कहणत्थं) क्रिविअ (हट्ट) 2/1 (गच्छ) व 3/1 सक (गच्छ) वकृ 2/1 (ससुर) 2/1 (ता) 1/1 स
(वय) व 3/1 सक कहने के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।
गच्छइ गच्छन्तं ससुरं
वह पुत्र को कहने के लिए दुकान को (पर) जाता है (गया) जाते हुए ससुर को वह कहती है
सा
वएइ
1.
290
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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