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36.
जणणीए
सिरपणामं
काऊणं
सेसमाइवग्गस्स
पुरव
य
नरवरिन्द
पणमइ
रामो
गमणसज्जो
37.
आपुच्छिया
य
सव्वे
पुरोहियाऽमच्चबन्धवा
सुडा
रह-गय-तुरंगमा
वि
य
पलोइया
निद्धदिट्ठीए
38.
चाउव्वण्णं
च
जणं
आपुच्छेऊण
निग्गओ
( जणणी) 1 4/1
[(सिर) - (पणाम) 2/1] (काऊणं) संकृ अनि
[(सेस) - (माइ) - ( वग्ग ) 1 4 / 1 ]
अव्यय
अव्यय
( नरवरिंद) 2 / 1
(पणम) व 3 / 1 सक
(राम) 1 / 1
[ ( गण ) - ( सज्ज ) 1 / 1 वि]
(चाउव्वण्ण) 2 / 1 वि
अव्यय
( जण ) 2 / 1
(आपुच्छ) संकृ
(निग्गअ ) भूकृ 1 / 1 अनि
1. 'पणम' के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है ।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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अव्यय
(पलोइय) भूकृ 1 / 2 अनि
[(निद्ध) - (दिट्ठि) 3 / 1]
माता को
सिर से प्रणाम
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करके
शेष मातृवर्ग को
पुनः
तथा
राजा को
प्रणाम करता है
(आपुच्छ) भूक 1/2
अव्यय
(सव्व) 1/2 स
सब
[(पुरोहिय)-(अमच्च) - ( बन्धव) 1/2 ] पुरोहित, अमात्य, बन्धुजन
(सुहड) 1 / 2
सुभट
[ (रह) - (गय) - (तुरंगम) 1 / 2]
रथ, हाथी एवं घोड़े
अव्यय
भी
राम
जाने के लिए तैयार
पूछे गए
तथा
और
देखे गए
स्निग्ध दृष्टि से
चतुवर्ण
और
लोगों की
आज्ञा लेकर
निकले
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