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(एग) 2/1 वि
एक
अव्यय
अव्यय
पादपूरक
(मुहुत्त) 2/1
मुहूर्त को
30.
जाकर
गन्तूण निययजणणी
आउच्छ
राहवो कयपणामो अम्मो ! वच्चामि अहं
(गन्तूण) संकृ अनि [(निअय)-(जणणि) 1/1] (आउच्छ) व 3/1 सक (राहव) 1/1 [(कय) भूकृ अनि-(पणाम) 1/1] अव्यय (वच्च) व 1/1 सक (अम्ह) 1/1 स [(दूर)-(पवास) 2/1] (खम) विधि 2/1 सक
अपनी माता आज्ञा लेता है (आज्ञा ली) राम ने प्रणाम की गई हे माता! जाता हूँ
दूरपवासं
दूर प्रवास को क्षमा करें
खमेज्जासु 31. सुणिऊण वयणमेयं
सुनकर वचन को,
सहसा
अचानक
तो
मुच्छिऊण पडिबुद्धा भणइ
(सुण) संकृ [(वयणं)+ (एयं)] वयणं (वयण) 2/1 एयं (एय) 2/1 सवि अव्यय अव्यय (मुच्छ) संकृ (पडिबुद्ध) भूकृ 1/1 अनि (भण) व 3/1 सक (सुय) 2/1 (रोवन्त-रोवन्ती) वकृ 1/1 (पुत्त) 8/1 (किं) 1/1 स (अम्ह) 6/1 स (परिच्चय) व 2/1 सक
तब/उस समय मूर्च्छित होकर जागी कहती है
पुत्र को
रोवन्ती
पुत्तय
रोती हुई हे पुत्र! क्या
मेरा
परिच्चयसि
परित्याग करते हो
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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