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जायइ तह य छेयभणिएहिं
(जा) व 3/1 अक अव्यय [(छेय)-(भण) भूकृ 3/2]
उत्पन्न होता है उसी तरह ही निपुण के द्वारा बोले गये (वचन) से जल से
उययस्स
वासियसीयलस्स तितिं
(उयय) 6/1 अव्यय [(वास) भूकृ-(सीयल) 6/1 वि] (तित्ति) 2/1 अव्यय
तथा सुगन्धित शीतल (से) ऊब को
नहीं
वच्चामो
(वच्च) व 1/2 सक
जाते हैं (प्राप्त होते हैं)
पाइयकव्वस्स'
प्राकृत काव्य को
नमो
नमस्कार
पाइयकव्वं
प्राकृत काव्य
[(पाइय)-(कव्व) 4/1] अव्यय [(पाइय)-(कव्व) 1/1] अव्यय (निम्म) भूकृ 1/1 . (ज) 3/1 सवि (त) 4/2 स अपभ्रंश
तथा
निम्मियं जेण
रचा गया जिसके द्वारा उनको
ताह'
चिय
अव्यय
प्रणाम करते हैं
पणमामो पढिऊण
पढ़कर
तथा
(पणम) व 1/2 सक (पढ) संकृ अव्यय (ज) 1/2 सवि अव्यय (जाण) व 3/2 सक
जाणंति.
समझते हैं
जो (उत्पन्न होना) के योग में पंचमी या सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। 'जा' से 'जायइ' बनाने के लिए 'अ' (य) विकल्प से जोड़ दिया जाता है। कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया या पंचमी विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) 'नमो' (नमस्कार अर्थ) के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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