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सम्यग्ज्ञान को
सण्णाणं वियाणेहि
(सण्णाण) 2/1 (वियाण) आज्ञा 2/1 सक
समझ
3.
अप्पा
ण
अव्यय
जाण
जानो
चारित्तसमारूढो
[(चारित्त) + (सम)+(आरूढ़ो)] चारित्र पर पूर्णत: आरूढ़ [(चारित्त)-(सम) अ= पूर्णतः (आरूढ़) भूक 1/1 अनि] (अप्प) 2/1 अपभ्रंश
आत्मा में सुपरं [(सु) (अव्यय) श्रेष्ठ,
श्रेष्ठ, परं-(पर) 2/1 वि]
पर वस्तु को
नहीं ईहए (ईह) व 3/1 सक
देखता है णाणी (णाणि) 1/1 वि
ज्ञानी पावइ (पाव) व 3/1 सक
प्राप्त करता है अइरेण अव्यय
शीघ्र (सुह) 2/1
सुख अणोवमं (अणोवम) 2/1 वि
अनुपम (जाण) विधि 2/1 सक णिच्छयदो
(णिच्छय) पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय निश्चय से 4. संजमसंजुत्तस्स
[(संजम)-(संजुत्त) भूकृ 6/1 अनि] संयम से जुड़े हुए अव्यय
तथा सुझाणजोयस्स [(सु) अ= श्रेष्ठ
श्रेष्ठ, (झाण)-(जोय) 6/1 वि]
ध्यान के लिए उपयुक्त मोक्खमग्गस्स [(मोक्ख)-(मग्ग) 6/1]
मोक्ष मार्ग के णाणेण (णाण) 3/1
परम ज्ञान से (लह) व 3/1 सक
प्राप्त करता है लक्खं (लक्ख) 2/1
लक्ष्य को तम्हा अव्यय
इसलिए 1. इसका प्रयोग प्राय: कर्तृवाच्य में किया जाता है। 2. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत
व्याकरण 3-137)
लहदि ।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
199
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