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दव्वलिंगं
बाह्य वेश
नहीं
जाण
जानो
परमत्थं
सच्चाई
[(दव्व)-(लिंग) 1/1] अव्यय (जाण) विधि 2/1 सक (परमत्थ) 1/1 (भाव) 1/1 (कारण)-(भूद) भूकृ 1/1 अनि [(गुण)-(दोस) 6/2] (जिण) 1/2 (बू) व 3/2 सक
भावो कारणभूदो गुणदोसाणं जिणा बिंति
भाव
कारण हुआ गुण-दोषों का जितेन्द्रिय व्यक्ति कहते हैं
भाव-शुद्धि के हेतु बाह्य परिग्रह का किया जाता है
12. भावविसुद्धिणिमित्तं बाहिरगंथस्स कीरए चाओ बाहिरचाओ विहलो अब्भंतरगंथजुत्तस्स
त्याग
[(भाव)-(विसुद्धि)-(णिमित्त) 1/1] [(बाहिर) वि-(गंथ) 6/1] (कीरए) व कर्म 3/1 सक अनि (चाअ) 1/1 [(बाहिर) वि-(चाअ) 1/1] (विहल) 1/1 वि [(अब्भंतर) वि-(गंथ)-(जुत्त) 6/1 वि
बाह्य त्याग निरर्थक आन्तरिक, परिग्रह से युक्त का
13. जाणहि
भावं
समझो भाव को सर्वप्रथम
पढमं
ति
क्या
(जाण) विधि 2/1 सक (भाव) 2/1 अव्यय (किं) 1/1 सवि (तुम्ह) 4/1 स (लिंग) 3/1 [(भाव)-(रह) भूक 3/1] (पंथिय) 8/1 [(सिवपुरि)-(पंथ) 1/1]
लिंगेण . भावरहिएण पंथिय सिवपुरिपंथं
तुम्हारे लिए वेश से भावरहित से हे पथिक!
शिवपुरी का मार्ग
1.
प्राकृतमार्गोपदेशिका, पृष्ठ 152
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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