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सामिय देहाऽऽणत्तिं
हे स्वामी! आज्ञा दें,
किं
क्या
करणिज्जं भडेहि संलवियं भणियं
(सामिय) 8/1 [(देह)+ (आणत्ति)] देह (दा) विधि 2/2 सक आणत्तिं (आणत्ति) 2/1 अव्यय (कर) विधिकृ 1/1 (भड) 3/2 (संलव) भूकृ 1/1 (भण) भूकृ 1/1 अव्यय (दसरह) 3/1 (पव्वज्जा ) 2/1 (गिण्ह) व 1/2 सक अव्यय
किया जाना चाहिए सुभटों के द्वारा वार्तालाप किया गया
कहा गया
कि
दशरथ के द्वारा
दसरहेणं पव्वज्जं गिण्हिमो
प्रव्रज्या ग्रहण करते हैं
अज्जं
आज
A.
अह
अव्यय
तब
भणन्ति
(त) 2/1 स (भण) व 3/2 सक (मन्ति) 1/2 (सामिय) 8/1
उनको कहते हैं मंत्री हे स्वामी!
मन्ती
सामिय
किं
अव्यय
क्या
अज्ज
आज
कारणं
कारण
जायं
धणसयलजुवइवग्गं
अव्यय (कारण) 1/1 (जाय) भूक 1/1 अनि [(धण)-(सयल) वि(जुवइ)-(वग्ग) 2/1] अव्यय (तुम्ह) 1/1 स
उत्पन्न हुआ है धन एवं समस्त स्त्री समूह को जिससे कि तुम (आप)
जेण
तुम
पुस्तक में 'भाणिया' शब्द है। लेकिन व्याकरण के नियमानुसार ‘भणियं' उचित प्रतीत होता है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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