________________
भव्वजीवाणं
9.
सत्तूमित्ते
य
समा
पसंसणिंदा अलद्धिलद्विसमा
तणकणए
समभावा
पव्वज्जा
एरिसा
भणिया
10.
उत्तममज्झिमगेहे
दारिद्दे
ईसरे
णिरावेक्खा
सव्वत्थ
गिहिदपिंडा
पव्वज्जा
एरिसा
भणिया
11.
भावो
हि
पढमलिंगं
ण
1.
2.
202
[ ( भव्व) - (जीव ) 6 / 2]
Jain Education International
[ ( सत्तू ) ' - ( मित्त) 7 / 1]
अव्यय
(सम (स्त्री) समा) 1 / 1 वि
(पसंस ) 2 - (णिंदा) - (अलद्धि) - (लद्धि) -
(सम (स्त्री) समा) 1 / 1 वि
[ ( तण ) - (कणअ) 7 / 1]
[ ( समभावा) 1 / 1 वि]
( पव्वज्जा ) 1 / 1
(एरिस (स्त्री) एरिसा) 1 / 1 वि
(भण) भूक़ 1 / 1
अव्यय
[(गिहिद) - (पिंडा)][(गिह) भूकृ 1 / 1 अनि - (पिंड) 1/2 ]
(पव्वज्जा) 1/1
(एरिस (स्त्री) एरिसा) 1 / 1 वि
(भण) भूकृ 1 / 1
[(उत्तम) वि - (मज्झिम) वि - (गेह) 7 / 1] उत्तम और मध्यम गृह
में
(दारिद्द) 7/1
गरीबी में
(ईसर) 7/1
अमीर (व्यक्ति) में
(णिरावेक्ख (स्त्री) णिरावेक्खा ) 1 / 1 वि
निरपेक्ष
प्रत्येक स्थान में
स्वीकृत, आहार
(भाव) 1 / 1
अव्यय
[ ( पढम) वि - (लिंग) 1 / 1]
अव्यय
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'त्तु' को 'तू' किया गया है।
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'पसंसा' को 'पसंस' किया गया है।
भव्य जीवों का
For Private & Personal Use Only
शत्रु और मित्र में निश्चय ही
समान
प्रशंसा और निन्दा में,
लाभ और अलाभ में समान
तृण और सुवर्ण में
समभाव
संन्यास
ऐसा
कहा गया है
संन्यास
ऐसा
कहा गया है
भाव
निस्सन्देह
प्रधान वेश
नहीं
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
www.jainelibrary.org