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णव-घण- विंदेण'
सारिच्छं
3.
सुरधणु-तडव्व
चवला
इंदिय-विसया
सुभिच्च व
य
दिट्ठ - पणट्ठा
सव्वे
तुरय-गया
रहवरादी
य
4.
पंथे
-वग्गा
पहिय-जणाणं
जह
संजोओ
हवेइ
खणमित्तं
बंधु-जाणं
च
तहा
संजोओ
अद्धुओ
होइ
[(णव) - (घण) - (विंद ) 3 / 1 ] ( सारिच्छ ) 1 / 1 वि
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[ ( सुरधणु ) - (तडि ) 2 1 / 1- (व्व) (अ) = की तरह ]
(चवल) 1/2 वि
[ ( इंदिय) - (विसय) 1/2]
[ ( सुभिच्च) - ( वग्ग ) 1/2]
अव्यय
[ ( दिट्ठ) - (पणट्ठ) भूक 1/2 अनि ]
( सव्व) 1 / 2 सवि
[ ( तुरय) - ( गय) 1 / 2 ]
[ (रह) - (वर) + (आदी)]
[ (रह) - (वर) - ( आदि) 1/2]
अव्यय
( पंथ) 7/1
[ ( पहिय) - ( जण) 6 / 2]
अव्यय
( संजोअ) 1/1
( हव) व 3 / 1 अक
अव्यय
[ ( बंधु) - (जण) 6 / 2]
अव्यय
अव्यय
(संजोअ) 1/1 (अद्धअ) 1/1 वि
(हो) व 3 / 1 अक
नए मेघ-समूह
समान
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इन्द्रधनुष और बिजली की तरह
चंचल
इन्द्रियों के विषय
अच्छे नौकरों का समूह
तथा
दिखाई दिये और नष्ट हुए
सभी
घोड़े, हाथी
उत्तम रथ वगैरह
तथा
के
मार्ग में
पथिकजनों का
1.
समान के योग में तृतीया विभक्ति आती है।
2. आगे संयुक्ताक्षर व्व होने के कारण 'तडी' के स्थान पर 'तडि' हुआ है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
जिस तरह
संयोग
होता है
क्षणभर के लिए
बन्धुजनों को
निश्चय वाचक (ही)
उसी तरह
संयोग
अस्थिर
होता है
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