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13.
आउ-क्खएण
आयु के क्षय से
मरणं
मरण
आउं
[(आउ)-(क्खय) 3/1] (मरण) 1/1 (आउ) 2/1 (दा) हेकृ अव्यय
आयु (को) देने के लिए
दाउं
ण
नहीं
(सक्क
) व 3/1 अक
सक्कदे को वि
समर्थ है कोई भी इसलिए देवेन्द्र
(क) 1/1 स वि (अव्यय) अव्यय (देविंद) 1/1
तम्हा
देविंदो
वि
अव्यय
अव्यय
मरणाउ
(मरण) 5/1 अव्यय
और मरण से नहीं बचाता है (बचा सकता है) कोई भी
(रक्ख
) व 3/1 सक
रक्खदे को वि
अव्यय
14. एक्कं चयदि सरीरं
एक छोड़ता है शरीर को अन्य को
अण्णं
गिण्हेदि णव-णवं जीवो
ग्रहण करता है नये-नये
(एक्क) 2/1 वि (चय) व 3/1 सक (सरीर) 2/1 (अण्ण) 2/1 सवि (गिण्ह) व 3/1 सक [(णव)-(णव) 2/1 वि] (जीव) 1/1 अव्यय [(अण्ण)-(अण्ण) 2/1 स] (गिण्ह) व 3/1 सक (मुंच) व 3/1 सक [(बहु) वि-(वार) 2/1]
जीव
पुणु पुणु अण्णं अण्णं गिण्हदि
पुनः पुनः अन्य-अन्य को ग्रहण करता है छोड़ता है अनेक बार
मुंचेदि
बहु-वारं
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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