________________
कि
क्या
गुणों से
सज्जन के
बिजली की तरह अस्थिर
गुणेहि सुयणस्स विज्जुप्फुरियं रोसो मित्ती पाहाणरेह
क्रोध
(किं) 1/1 सवि (गुण) 3/2 (सुयण) 6/1 [(विज्जु)-(प्फुरिय) 2/1 वि] (रोस) 1/1 (मित्ती) 1/1 [(पाहाण)-(रेहा) 1/1] (आगे संयुक्त अक्षर (व्व) के आने से दीर्घ स्वर ह्रस्व हुआ) अव्यय
मित्रता पत्थर की रेखा
की तरह
14.
दीणं अब्भुद्धरि
दीन का (को) उद्धार करना प्राप्त होने पर शरण में आये हुए
पत्ते
सरणागए
(दीण) 2/1 (अब्भुद्धर) हेकृ (पत्त) 7/1 वि [(सरण)+ (आगए)] [(सरण)-(आगअ) भूकृ 7/1 अनि] (पिय) 2/1 वि (काउं) हेकृ अनि (अवरद्ध) 7/2 अव्यय (खम) हेकृ (सुयण) 1/1
पियं काउं अवरद्धेसु'
प्रिय
करना
अपराधों को
वि
भी
खमि
क्षमा करना
सुयणो
सज्जन
च्चिय
अव्यय
ही
अव्यय
केवल
नवरि जाणे
(जाण) व 3/1 सक
जानता है
कभी-कभी प्रथमा विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) की वृत्ति 'समर्थ' आदि का बोध करानेवाले शब्दों के साथ हेकृ का प्रयोग होता है। कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135)
178
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org