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होउ
(हो) विधि 3/1 अक
27.
कीरइ
समुद्दतरणं पविसिज्जइ हुयवहम्मि पज्जलिए आयामिज्जड
(कीरइ) व कर्म 3/1 सक अनि [(समुद्द)-(तरण) 1/1] (पविस) व कर्म 3/1 सक (हुयवह) 7/1 (पज्जल) भूकृ 7/1 (आयाम) व कर्म 3/1 सक (मरण) 1/1 अव्यय (दुलंघ) 1/1 वि (सिणेह) 4/1
किया जाता है समुद्र भी पार प्रवेश किया जाता है अग्नि में प्रज्वलित स्वीकार किया जाता है
मरण
मरणं नत्थि
नहीं
दुलंघ
अलंघनीय स्नेह के लिए
सिणेहस्स
28.
अकेले
एक्काइ नवरि
केवल
नेहो
स्नेह
पयासिओ तिहुयणम्मि जोण्हाए
व्यक्त किया गया है तीनों लोकों में चन्द्र प्रकाश के द्वारा
(एक्काइ) वि
अव्यय (नेह) 1/1 (पयास) भूकृ 1/1 (तिहुयण) 7/1 (जोण्हा) 3/1 (जा) 1/1 स (झिज्ज) व 3/1 अक (झीण) 7/1 वि (ससहर) 7/1 (वडू) व 3/1 अक (वड्ड) वकृ 7/1
जा
झिज्जइ
झीणे
ससहरम्मि वड्डे वढते 29. झिज्जइ
क्षीण होता है क्षीण (चन्द्रमा) में चन्द्रमा में बढ़ता है बढ़ते हुए में
(झिज्ज) व 3/1 अक
क्षीण होता है
1.
कर्ता कारक में केवल मूलशब्द भी काम में लाया जा सकता है। (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 518)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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