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________________ 6. सुयणो सुद्धसहाव मइलिज्जतो वि दुज्जजण छारेण दप्पणो विय अहिययरं निम्मलो होइ 7. सुयणो न कुप्पइ च्चिय अह कुप्पइ मंगलं न चिंतेइ अह चिंतेइ न जंपड़ अह जंपड़ लज्जिरो होइ 174 Jain Education International ( सुयण) 1 / 1 [ (सुद्ध) वि - (सहाव ) 1 / 1] वि] ( मइल) कर्मवकृ 1 /1 अव्यय [ ( दुज्जण) - ( जण ) 3 / 1] (छार ) 3 / 1 (दप्पण) 1 / 1 अव्यय ( अहिययर) 1 / 1 तुवि ( निम्मल) 1 / 1 वि (हो) व 3 / 1 अक (सुयण) 1 / 1 अव्यय (कुप्प ) व 3 / 1 सक अव्यय अव्यय (कुप्प) व 3 / 1 सक (मंगुल) 2 / 1 अव्यय ( चिंत) व 3 / 1 सक अव्यय ( चिंत) व 3 / 1 सक अव्यय (जंप) व 3 / 1 सक अव्यय (जंप) व 3 / 1 सक ( लज्जिर) 1 / 1 वि (हो) व 3 / 1 अक For Private & Personal Use Only सज्जन उज्ज्वल स्वभावी मलिन किया जाते हुए भी दुर्जन मनुष्य के द्वारा. क्षार के द्वारा दर्पण जैसे और भी अधिक निर्मल हो जाता है। सज्जन नहीं क्रोध करता है भी यदि क्रोध करता है अनिष्ट नहीं सोचता है नहीं सोचता है नहीं बोलता है यदि बोलता है लज्जा-युक्त होता है प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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