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________________ 8. दिट्ठा हरंति दुक्खं जंपता देंति सयलसोक्खाई Ἐ· विहिणा सुक सुयणा '15 निम्मिया भुवणे 9. 1 न हसंति' परं न थुवंति अप्पयं पियसयाइ ' जंपंति एसो सुयणसहावो नमो नमो 1. 2. 3. प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ (दिड ) भूक 1 / 1 अनि (हर) व 3 / 2 सक ( दुक्ख ) 2 / 1 (जंप) वकृ 1/2 Jain Education International (दा) व 3 / 2 सक [(सयल) वि - (सोक्ख) 2/2] (एअ) 1/1 सवि (fafe) 3/1 (सु-कय) भूक 1 / 1 अनि (सुयण) 1/2 अव्यय (निम्म) भूकृ 1/2 (भुवण) 7/1 अव्यय ( हस) व 3 / 2 सक (पर) 2/1 अव्यय (थुव) व 3 / 2 सक ( अप्पय) 2 / 1 'य' स्वार्थिक [(पिय) वि - (सय) 2/2] (जंप) व 3/2 सक ( एत) 1 / 1 सवि [ ( सुयण) - (सहाव ) 1 / 1] अव्यय अव्यय मिले हुए हरते हैं For Private & Personal Use Only दुःख को बोलते हुए देते हैं सभी सुख यह विधि द्वारा शुभ ( कार्य ) किया गया सज्जन कि बनाये गये जगत में हस क्रिया ‘उपहास करना' अर्थ में कर्म के साथ प्रयुक्त होती है। (देखें संस्कृत कोश ) पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ- 516 'नमो' के योग में चतुर्थी होती है। नहीं उपहास करते हैं दूसरे का नहीं प्रशंसा करते हैं निज की सैंकड़ों प्रिय बोलते हैं यह सज्जन का स्वभाव नमस्कार नमस्कार www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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