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31. थोवम्मि सिक्खिदे
(थोव) 7/1 वि (सिक्ख) भूकृ 7/1 (जिण) व 3/1 सक
जिणइ
अल्प (होने पर) शिक्षित होने पर जीत लेता है (मात कर देता है) विद्वान को जो चरित्र-युक्त
बहुसुदं जो चरित्तसंपुण्णो
जो
जो
पुण
किन्तु
(बहुसुद) 2/1 वि (ज) 1/1 सवि [(चरित्त)-(संपुण्ण) भूकृ 1/1 अनि] (ज) 1/1 सवि अव्यय [(चरित्त)-(हीण) भूक 1/1 अनि] (किं) 1/1 सवि (त) 4/1 स (सुद) 3/1 (बहुअ) 3/1 वि
। अनि]
चरित्रहीन
चरित्तहीणो किं
क्या
तस्स सुदेण बहुएण 32.
उसके लिए श्रुत ज्ञान से बहुत (से)
आहारासणणिद्दाजयं
[(आहार)+(आसण)+ (णिद्दा) + (जय)] [(आहार)-(आसण)-(णिद्दा)-(जय) 2/1]
आहार, आसन और निद्रा पर विजय (को)
और प्राप्त करके
अव्यय
काऊणं
जिणवरमएण
जिन-सिद्धान्त में
झायव्वो
ध्यायी जानी चाहिए
(काऊणं) संकृ अनि [(जिणवर)-(मअ)' 3/1] (झा) विधिकृ 1/1 [(णिय)-(अप्प) 1/1] (णा) संकृ [(गुरु)-(पसाअ) 3/1]
णियअप्पा
निज आत्मा
णाऊणं
समझकर
गुरुपसाएण
गुरु-कृपा से
33.
जरा
(जरा) 1/1
बुढ़ापा
1.
कभी-कभी तृतीया विभक्ति का प्रयोग सप्तमी विभक्ति के स्थान पर किया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137)
150
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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