________________
परिसिंचई
(परिसिंच) व 3/1 सक
भिगोती है (भिगोया)
28.
अन्नं
(अन्न) 2/1 (पाण) 2/1
पाणं
भोजन (को) पेय (पदार्थ) को और
पहाणं
स्नान
अव्यय (ण्हाण) 2/1 अव्यय [(गंध)-(मल्ल)-(विलेवण) 2/1]
गंध-मल्लविलेवणं
और सुगन्धित द्रव्य, फूल, खुशबूदार लेप का (को) मेरे द्वारा
मए
णायमणायं
(अम्ह) 3/1 स [(णायं)+(अणायं)] णायं (णाय) भूकृ 1/1 अनि अणायं (अणाय) भूकृ 1/1 अनि
जाना गया, न जाना गया
अव्यय
अथवा
वह
बाला
(ता) 1/1 सवि (बाला) 1/1 [(न)+(उवभुंजई)] न (अव्यय) उवभुंजई' (उवभुंज) व 3/1 सक
नोवभुंजई
तरुणी नहीं, उपयोग करती है (थी)
29.
खणं
अव्यय
एक क्षण के लिए
महाराय
पासाओ
अव्यय (अम्ह) 6/1 स
मेरी (महाराय) 8/1
हे राजाधिराज! (पास) 5/1
पास से अव्यय अव्यय
नही (फिट्ट) व 3/1 अक
जाती है (जाती थी) अव्यय
नहीं अव्यय
फिर भी पूरी गाथा के अन्त में आनेवाली 'ई' का क्रियाओं में बहुधा 'ई' हो जाता है। (पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138)
फिट्टई
1.
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
167
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org