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पंचक्खरनिप्पण्णो
पाँच अक्षरों से निकला हुआ
ओंकारो
[(पंच)+(अक्खर) + (निप्पण्णो)] [(पंच) वि-(अक्खर)-(निप्पण्ण) भूक 1/1 अनि] (ओंकार) 1/1 (पंच) 1/2 वि (परमिट्टी) 1/2
पंच परमिट्ठी
ओम् पंच परमेष्ठी
13.
अरहंतभासियत्थं
अरहंत द्वारा प्रतिपादित
अर्थ
गणहरदेवेहिं गंथियं सम्म पणमामि भत्तिजुत्तो सुदणाणमहोदहिं सिरसा
[(अरहंत) + (भासिय)+ (अत्थं)] [(अरहंत)-(भासिय)-भूकृ(अत्थ) 1/1] [(गणहर)-(देव) 3/2] (गंथ) भूकृ 1/1 अव्यय (पणम) व 1/1 सक [(भत्ति)-(जुत्त) 1/1 वि [(सुद)-(णाण)-(महोदहि) 2/1] (सिर) 3/1 अनि
गणधर देवों द्वारा रचा हुआ भली प्रकार से प्रणाम करता हूँ भक्ति-सहित श्रुत ज्ञानरूपी महासमुद्र को सिर से
Tuloksellel.
14.
ससमय-परसमयविऊ
स्व-सिद्धान्त तथा परसिद्धान्त का ज्ञाता
गम्भीर
गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो गुणसयकलिओ जुत्तो पवयणसारं परिकहे
[(स) वि-(समय)-(पर) वि(समय)-(विउ) 1/1 वि] (गंभीर) 1/1 वि (दित्तिम) 1/1 वि (सिव) 1/1 वि (सोम) 1/ वि [(गुण)-(सय) वि-(कल) भूकृ 1/1] (जुत्त) 1/1 वि (पवयण)-(सार) 2/1 (परिकह) हेक
आभायुक्त कल्याणकारी सौम्य सैकड़ों गुणों से युक्त योग्य सिद्धान्त के सार को कहने के लिए
1.
अकर्मक क्रिया से बना होने के कारण कर्तृवाच्य में प्रयुक्त।
132
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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