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सव्वविणासणो
[(सव्व) वि-(विणासण) 1/1 वि]
सब (गुणों) का विनाशक
13. उवसमेण
हणे कोहं माणं
क्षमा से नष्ट करें क्रोध को
मान को
मद्दवया जिणे
(उवसम) 3/1 (हण) विधि 3/1 सक (कोह) 2/1 (माण) 2/1 (मद्दव) स्वार्थिक 'य' 5/1 (जिण) विधि 3/1 सक (माया) 2/1 [(च)+ (अज्जव)+(भावेण)] च (अ)=और [(अज्जव)-(भाव) 3/1] (लोभ) 2/1 संतोसओ' (संतोस) 5/1 (जिण) विधि 3/1 सक
विनय से जीते कपट को और, सरलता से
मायं चऽज्जवभावेण
लोभं
संतोसओ जिणे
लोभ को संतोष से जीते
14.
जहा
जिस प्रकार
कुम्मे
कछुआ अपने अंगों को
अव्यय (कुम्म) 1/1 [(स) वि-(अंग) 2/2] (स) स्वार्थिक 'अ' प्रत्यय 7/1 (देह) 7/1 (समाहर) व 3/1 सक
सअंगाई सए देहे समाहरे
अपने
शरीर में
एकत्र करता है (समेट लेता है) इसी प्रकार से पापों को
एवं
अव्यय
मेधावी
पावाई मेहावी अज्झप्पेण समाहरे
(पाव) 2/2 (मेहावि) 1/1 वि (अज्झप्प) 3/1 (समाहर) व 3/1 सक
अध्यात्म के द्वारा समेट लेता है
संतोसाओ-संतोसओ, विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में ह्रस्व हो जाते हैं। (पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 182)।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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