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विणीअस्स
(विणीअ) 6/1 वि
अव्यय
विनीत के
और जिसके द्वारा, यह
जस्सेयं
दुहओ
नायं सिक्खं
(जस्स)+ (एयं) जस्स (ज) 6/1 स एयं (एय) 1/1 सवि अव्यय (नाय) भूकृ 1/1 अनि (सिक्खा ) 2/1 (त) 1/1 सवि (अमिगच्छ) व 3/1 सक
दोनों प्रकार से जाना हुआ विनय को
वह
अभिगच्छइ
ग्रहण करता है
27.
अह पंचहिं ठाणेहिं जेहिं सिक्खा
अच्छा तो पाँच कारणों से
अव्यय (पंच) 3/2 वि (ठाण) 3/2 (ज) 3/2 सवि (सिक्खा) 1/1 अव्यय
जि
शिक्षा
(लब्भइ) व कर्म 3/1 सक अनि
लब्भई थम्भा कोहा पमाएणं रोगेणाऽलस्सएण
(थम्भ) 5/1 (कोह) 5/1 (पमाअ) 3/1 [(रोगेण)+(आलस्सएण)] रोगेण (रोग) 3/1 आलस्सएण (आलस्स) स्वार्थिक 'अ' प्रत्यय 3/1
नहीं प्राप्त की जाती है अहंकार से क्रोध से प्रमाद से रोग से, आलस्य से
अव्यय
तथा
कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया विभक्ति के स्थान पर होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-134) छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। किसी कार्य का कारण व्यक्त करने वाली (स्त्रीलिंग भिन्न) संज्ञा में तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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