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पाठ - 11 यह किसकी पत्नी (है)
1. हस्तिनापुर नगर में शूर नामक राजपुत्र रहता था (जो) नाना गुणरूपी रत्नों से युक्त (था)। उसकी पत्नी गंगा नामवाली, शीलादि गुणों से अलंकृत और परम सौभाग्यशाली (और पराक्रमवाली) (थी)। सुमति नामक उनकी पुत्री थी। वह कर्मफल के वश से पिता, माता, भाई और मामा के द्वारा अलग-अलग वरों के लिए दे दी गई।
2. चारों ही वे वर एक ही दिन विवाह करने के लिए आ गये। (और) आपस में कलह करने लगे। तब उनके (मध्य में) उत्पन्न होते हुए विषम संग्राम में बहुत मनुष्यों के क्षय को देखकर सुमति कन्या आग में प्रविष्ट हुई, उसके साथ घनिष्ठ स्नेह के कारण एक वर भी प्रविष्ट हुआ। एक अस्थियों को गंगा के प्रवाह में डालने के लिए गया। एक चिता की राख को वहाँ ही जलधारा में डालकर उस दुःख के कारण मोहरूपी महाग्रहों से पकड़ा हुआ पृथ्वी पर भ्रमण करने लगा। चौथा वहाँ ही ठहरा। उस स्थान की रक्षा करते हुए प्रतिदिन एक अन्न पिण्ड को छोड़ता हुआ काल बिताने लगा।
3. अब तीसरा मनुष्य पृथ्वी पर घूमता हुआ किसी ग्राम में पाकगृह में भोजन बनवाकर जीमने के लिए बैठा। उसके लिए घर स्वामिनी ने (भोजन) परोसा। तब उसका छोटा पुत्र अत्यन्त रोया। तब वह क्रोध की वशीभूतता को प्राप्त हुई। उसके द्वारा वह बालक अग्नि में फेंक दिया गया। वह वर भोजन करता हुआ उठने के लिए उद्यत हुआ। उसने कहा- “सन्तानरूप किसी के लिए भी
अप्रिय नहीं होते हैं जिनके लिए माता-पिता अनेक देवताओं की पूजा, दान, मंत्र, जप आदि क्या-क्या नहीं करते हैं। तुम सुखपूर्वक भोजन करो। पीछे ही (मैं) इस पुत्र को जीवित कर दूंगी।" तब वह भी भोजन करके शीघ्र उठा, प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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