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प्रकार ये निकाले जाने चाहिए, इस प्रकार विचार करके उपाय प्राप्त किया हुआ ससुर पत्नी को पूछता है- ये दामाद रात्रि में सोने के लिए कब आते हैं? तब पत्नी ने कहा- कभी रात्रि में एक प्रहर गये आते हैं, कभी दो-तीन प्रहर गये आते हैं।
5. पुरोहित ने कहा- आज रात्रि में द्वार नहीं खोला जाना चाहिए, मैं जानूँगा। वे दोनों दामाद सायंकाल ग्राम में मनोरंजन के लिए गए। विविध क्रीड़ाएँ (कीला) करते हुए और नाटक देखते हुए मध्यरात्रि में घर के द्वार पर साथसाथ आए। द्वार को ढका हुआ देखकर द्वार खोलने के लिए उच्च स्वर से पुकारा- द्वार खोलो। तब द्वार के समीप सोने के लिए जागते हुए पुरोहित ने कहा- मध्यरात्रि को भी तुम कहाँ ठहरे? अब नहीं खोलूँगा। जहाँ द्वार खुला है, वहाँ जाओ। इस प्रकार कहकर मौन से बैठा। तब वे दोनों समीप में स्थित घुड़साल में गए। वहाँ बिस्तर के अभाव में अत्यन्त ठण्ड से रोगी होने के कारण घोड़े की पीठ पर ढकनेवाले आवरण वस्त्र को ग्रहण करके भूमि पर सोए। तब विजयराम दामाद के द्वारा विचारा गया- यहाँ अपमान-सहित ठहरने के लिए उचित नहीं है! तब उसने मित्र को कहा- हे मित्र! हमारी सुख शय्या क्या है? और यह जमीन पर लोटना कैसे होगा? अत: यहाँ से गमन ही श्रेष्ठ है। उस मित्र ने कहा- इस जैसे दु:ख में भी पर अन्न कहाँ? मैं तो यहाँ ठहरूँगा। यदि तुम जाने की इच्छा रखते हो तो जाओ। तब उसने प्रभात में पुरोहित के समीप जाकर सीख व अनुज्ञा माँगी तब पुरोहित ने कहा, अच्छा। इस प्रकार वह विजयराम, ‘भूशय्यासे विजयराम' भी निकाला गया।
6. अब केवल केशव दामाद वहाँ ठहरा, रहा, जाने की इच्छा नहीं की। पुरोहित भी केशव दामाद को निकालने के लिए युक्ति विचारता है। एक बार निज पुत्र के कान में कुछ भी कहकर जब केशव दामाद भोजन के लिए बैठा। पुरोहित का पुत्र समीप बैठा रहा तब मानसहित पुरोहित आया (और) पुत्र को पूछा- हे पुत्र! यहाँ मेरे द्वारा रुपया छोड़ा गया है और वह किसके द्वारा लिया गया है? उसने कहा- मैं नहीं जानता हूँ। पुरोहित कहता है
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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