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जो धर्म भव्यों के लिए ग्रहण करने योग्य (सुग्राह्य) है, अभव्य जीवों के लिए ग्रहण करने योग्य नहीं ( अग्राह्य) है देवों के लिए (जो) अभिलाषा किये जाने योग्य है ( वह) (धर्म) मोक्ष में जाने के लिए सुखजनक (मार्ग) है।
आज मुनियों के पास धर्म को सुनकर वैराग्य उत्पन्न हुआ है। इसलिए मैं संसार में जन्मरूपी समुद्र को पार करने की (के लिए) इच्छा करता हूँ।
(तुम) राज्य का पालन करने में समर्थ मेरे प्रथम पुत्र का ही अभिषेक करो जिससे विश्वस्त ( होकर) मैं आज निर्विघ्न संन्यास ग्रहण करता हूँ ( कर सकूँ) ।
प्रव्रज्या लेने के लिए दृढ़ निश्चयवाले राजा को (या) ( उसके ) ऐसे वचन को सुनकर सुभट, अमात्य और पुरोहित अचानक शोकरूपी समुद्र में गिरे (या पड़े) ।
इस कारण से दृढ़मति और दीक्षा की ओर अभिमुख राजा को जानकर अन्तःपुर की स्त्रियाँ व लोग सभी रोने के लिए उत्तेजित हुए ।
उस प्रकार ही पिता को देखकर भरत तत्काल जागृत हुआ (और) (उसने सोचा (कि) जीवलोक में स्नेह बन्धन मुश्किल से छेदा जाने वाला (होता है) ।
प्रव्रज्या के लिए प्रयत्नशील पिता के लिए पृथ्वी का क्या किया जाता है ( उद्देश्य है ) । इसीलिए ही ( उसके ) पालने के प्रयोजन से राज्य में (राजा) पुत्र को स्थापित करता है ।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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