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3. उसने कहा- हे राजा! प्रात:काल में मेरे मुख के दर्शन से (तुम्हारे द्वारा) भोजन ग्रहण नहीं किया गया, परन्तु तुम्हारा मुख देखने से मेरा वध होगा तब नगर के निवासी क्या कहेंगे? मेरे मुँह (दर्शन) की तुलना में श्रीमान् के मुख-दर्शन ने कैसे फल को उत्पन्न किया? नागरिक भी प्रभात में तुम्हारे मुख को कैसे देखेंगे? इस प्रकार उसकी वचन-युक्ति से राजा सन्तुष्ट हुआ। (वह) वध के आदेश को रद्द करके और उसको पारितोषिक देकर (प्रसन्न हुआ)। (इससे) वह अमांगलिक भी सन्तुष्ट हुआ।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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