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30.
जाकर (राम के द्वारा) अपनी माता प्रणाम की गई। (और) राम ने आज्ञा ली। हे माता! मैं दूर प्रवास को जाता हूँ। (आप मुझे) क्षमा करें।
अपना माता प्रणाम की गई। (और) राम ने आज्ञा
31.
ऐसे वचन को सुनकर (माता) उस समय अचानक मूर्च्छित होकर जागी। पुत्र को रोती हुई कहती है। हे पुत्र! क्या (तुम) मेरा परित्याग करते हो?
32. बहुत से मनोरथों के द्वारा (तुम) किसी तरह (मेरे द्वारा) प्राप्त किये
गये हो। हे पुत्र! (तुम) (मुझ) शरणरहित के लिए आलम्बन होओगे (जैसे) शाखा के लिए बीज ही (आलम्बन) (होता है)।
33. कैकेयी के वर के कारण पिता के द्वारा भरत को पृथ्वी दी गई
(और) यह कुमार मेरे होने के कारण पृथ्वी को भोगने के लिए (भोगने की) इच्छा नहीं करता है।
34.
हे पुत्र! राजा दीक्षा के अभिमुख हैं, तुम भी दूर जाओगे। पति और पुत्र से विरहित मैं (अब) यहाँ किसकी शरण में जाऊँगी।
35.
(राम ने कहा) विंध्याचल के शिखर पर, मलय पर्वत पर तथा सागर के समीप स्थिति करके मैं निश्चय ही तुम्हारे लिए आऊँगा।
36.
राम (अपनी) माता व शेष मातृवर्ग को सिर से प्रणाम करके जाने के लिए तैयार है। तथा पुनः राजा को प्रणाम करता है।
37. पुरोहित, अमात्य, बन्धुजन तथा सुभट पूछे गए और रथ, हाथी एवं
घोड़े भी स्निग्ध दृष्टि से देखे गए।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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