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पाठ - 7 दसरहपव्वज्जा
1.
एव सुणिऊण राया, कम्मविवागं जणस्स सयलस्स। संसारगणभीओ, इच्छइ घेत्तूण पव्वज्जं।
2.
सद्दाविया य सिग्धं, सामन्ता आगया समन्तिजणा। काऊण सिरपणाम, उवविट्ठा आसणवरेसु॥
सामिय! देहाऽऽणत्तिं, किं करणिज्जं? भडेहि संलवियं । भणियं य दसरहेणं, पव्वज्जं गिण्हिमो अज्जं॥
अह तं भणन्ति मन्ती, सामिय! किं अज्ज कारणं जायं। धणसयलजुवइवग्गं, जेण तुमं ववसिओ मोत्तुं?॥
5.
तो भणइ नरवरिन्दो, पच्चक्खं वो जयं निरवसेसं। सुक्कं व तणमसारं, डज्झइ मरणग्गिणा णिययं॥
पुस्तक में 'भाणिया' शब्द है। लेकिन व्याकरण के नियनमानुसार 'भणियं' उचित प्रतीत होता है। पाठ में 'धणियं' शब्द है। हमने यहाँ पउमचरियं भाग-1, पृष्ठ 250 पर बताए गए 'निययं' शब्द का प्रयोग किया है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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