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( ३ ) श्रावकों में 'आवश्यक' का प्रचार वैकल्पिक है । अर्थात् जो भावुक और नियम वाले होते हैं, वे अवश्य करते हैं और अन्य श्रावकों की प्रवृत्ति इस विषय में ऐच्छिक है। फिर भी यह देखा जाता है कि जो नित्य 'आवश्यक नहीं करता, वह भी पक्ष के बाद, चतुर्मास के बाद या आख़िरकार संवत्सर के बाद, उस को यथासम्भव अवश्य करता है । श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में 'आवश्यक-क्रिया' का इतना आदर है कि जो व्यक्ति अन्य किसी समय धर्मस्थान में न जाता हो, वह तथा छोटे-बड़े बालकबालिकाएँ भी बहुधा साम्वत्सरिक पर्व के दिन धर्मस्थान में 'आवश्यक-क्रिया' करने के लिये एकत्र हो ही जाते हैं और उस क्रिया को करके सभी अपना अहोभाग्य समझते हैं । इस प्रवृत्ति से यह स्पष्ट है कि 'आवश्यक-क्रिया का महत्त्व श्वेताम्बरसम्प्रदाय में कितना अधिक है। इसी सबब से सभी लोग अपनी सन्तति को धार्मिक शिक्षा देते समय सब से पहले 'आवश्यक-क्रिया' सिखाते हैं।
जन-समुदाय की सादर प्रवृति के कारण ' आवश्यकक्रिया' का जो महत्त्व प्रमाणित होता है, उस को ठीक-ठीक समझाने के लिये 'आवश्यक-क्रिया' किसे कहते हैं ? सामायिक आदि प्रत्येक 'आवश्यक' का क्या स्वरूप है ? उन के भेद-क्रम की उपपत्ति क्या है ? आवश्यक-क्रिया' आध्यात्मिक क्यों है ?' इत्यादि कुछ मुख्य प्रश्नों के ऊपर तथा उन के अन्तर्गत अन्य प्रश्नों के ऊपर इस जगह विचार करना आवश्यक है।
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