________________ नैषधीयचरिते पद को प्राप्त हुए हैं, उनके पास आकर ब्रह्मा का वाहन-भूत युगल आकर उन्हें मधुर शब्द से मानो सहंसक ( नूपुरी-सहित, हंसों-सहित ) बना रहा है // 38 // टिप्पणी-हंसकों ( पायजेबों ) को धारण किये दमयन्ती के दो सुन्दर पैरों पर कवि की कल्पना यह है कि मानो ने बड़ी तपस्या से पद रूप में परिणत दो कमल हों और मधुर ध्वनि करते हुए हंसक मी मानो दो हंसक ( हंस ) हो, जो हमेशा कमलों के साथ रहा करते हैं / 'हंसक' 'हंसक' में जहाँ शाद साम्य है, वहाँ मधुर शब्द करना दोनों में आर्थ साम्य भी है। इस तरह यहाँ दो उत्प्रेक्षाओं का संकर है / हसक शब्द में श्लेष है / शब्दालंकरों में 'पद' 'पद' में यमक, 'सेव' 'येव' में पदगत अन्त्यानुप्रास, 'रुतः' 'रुत' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। श्रितपुण्यसरःसरिकथं न समाधिक्षपिताखिलक्षपम् / नलजं गतिमेतु मम्जुलां दमयन्तीपदनाम्नि जन्मनि // 39 // अन्वयः-श्रित पुण्य-सर:-सरित् समाधि-क्षपिताखिल-क्षपम् जलजम् दमयन्तीपद-नाम्नि जन्मनि कथं मन्जुलाम् गतिम् न एतु। ... टीका-पुण्यानि पवित्राणि सरासि मानसादि-सरोवराश्च ( कर्मधा० ) पुण्या नद्यो गङ्गाद्याः सरित्तश्चेति ( द्वन्द्व० ) श्रिताः सेविताः ०सरितः (कर्मधा० ) येन तथाभूतम् (ब० वी० ), समाधिः ध्यानम् अथ च निमीलनं मुकुलीमाव इति यावत् तेन क्षपिता अतियापिताः ( तृ० तत्पु० ) अखिलाः सर्वाः क्षपा रात्रयः ( कर्मधा० ) येन तथाभूतम् (ब० वी० ) जलज कमलं दमयन्त्याः पदं चरण एव (50 तत्पु० ) नाम संज्ञा ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूते (ब० वी० ) जन्मनि जन्मान्तरे कथ कस्मात् मन्जुलां गति गमनम् अथ च पुण्यलोकप्राप्तिरूपां दशाम् ('गतिर्मागं दशायां च' इति विश्वः ) न एतु प्राप्नोतु, अपि तु प्राप्नोत्वेवेति काकुः। अन्योऽपि जन: पुण्यनदीः पुण्यस सि च सेवमानां रात्री परमात्मचिन्तनपरः सन् जन्मान्तरे सद्गति लभते / / 36 / / व्याकरण-समाधिः सम्+आ+Vधा+किः ( मावे ) / पित-/क्षि+पिच्+क (कर्मणि ) / गतिः गम् +क्तिन् ( मावे ) / अनुवाद-पवित्र सरोवरों और नदियों का आश्रय लिये, ( एवं ) समाधि ( निमोलन चिन्तन ) में अनेक रात विताये हुए कमल दमयन्ती के 'चरण' नाम वाले ( दूसरे ) जन्म में क्यों न सुन्दर गति ( गमन, पुण्यावस्था) प्राप्त करे ? / / 39 / / टिप्पणी-मावार्थ यह है कि दो कमलों ने जन्मान्तर में जो दमयन्ती के दो चरण-रूप उच्च पद को प्राप्त किया है, उस हेतु उन्होंने पूर्व जन्म में तीर्थों का सेवन और रातो चिन्तन किया था। इससे ऐसा लगता है कि कमक जैसे चेतन पुरुष हों। नदियों का आश्रयण और समाधि चेतनों की तरह कमलों में भी लग रही है। इसलिए अचेतनों का चेतनीकरण अथवा प्रस्तुत पर अप्रस्तुतव्यवहार-समारोप होने से यहाँ समासोक्ति है। शब्दालंकारों में "सरः' सिरि', 'क्षपि' 'आप' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है।