Book Title: Nabhak Raj Charitram Gujarati
Author(s): Merutungasuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 173
________________ Kीमेहतुजसरिविरचित भीमकराणायरितम् ERREET हिन्दी :- तब.गुरुमहाराजने कहा, "यदि ऐसा है तो आगे की नागगोष्ठी की कथा सुनो कि जिससे देवद्रव्य का विनाश करनेवाले को कैसा फल प्राप्त होता है इस बात की तुम्हे सम्यक् प्रकार से जानकारी हो जायेंगी। जिससे तुम सदा के लिये उससे अलग हो जाओगे।"॥१३६॥ मराठी:- तेव्हा गुरुमहाराज म्हणाले, "जर असे असेल तर त् त्या नागगोष्ठीची पुढची गोष्ट ऐक की, जेणे करून तुला, सम्वत् प्रकारे देवद्रव्य विनाश करणाऱ्यांना काय फळ मिळते त्यांची जाणीव होइलं वत्नेहमी त्यांच्या पासून राहशील."||१३६।। English:- At this the priest replied that King Nabhak should now be ready to hear the remaining part of the story of the Nag family, so that he can understand what fruits one can obtain on himself, if he utilizes God's wealth, and therfore be miles apart from it. __ षष्टि वर्षसहस्त्राणि, श्रीशत्रुञ्जयपर्वते॥ आयुर्भुक्त्वा नागजीवो, व्यन्तरश्च्युतवानथ // 137 // अन्वय:- अथ व्यन्तर: नागजीव: श्रीशत्रुज्जयपर्वते षष्टिवर्षसहस्त्राणि आयु: भुक्त्या तत: च्युतवान् // 137 // विवरणम्:- अथअनन्तरंव्यन्तरः नागस्यजीवः श्रियायुक्त:शत्रुञ्जयपर्वत: श्रीशत्रुञ्जयपर्वत:, तस्मिन् श्रीशत्रुञ्जयपर्वतवर्षाणांसहस्त्राणि वर्षसहस्त्राणि / षष्टिः वर्षसहस्त्राणि षष्टिवर्षसहस्त्राणि आयुः आयुष्यं भुक्त्वा उपभुज्य तत: च्युतवान् अच्यवत्॥१३७॥ सरलार्थ:- व्यन्तरः नागजीवः श्रीशत्रुञ्जयपर्वते षष्टिवर्षसहस्त्राणि आयुः भुक्त्वा तत: अच्यवत्॥१३७|| ગુજરાતી :-વ્યંતરદેવપણે ઉત્પન્ન થયેલ નાગશ્રેણીનો જીવ શ્રીશત્રુંજય પર્વત ઉપર સાઠ હજાર વર્ષનું આયુષ્ય ભોગવી ત્યાંથી सयो.॥१७॥ हिन्दी :- व्यतरदेव के रूप में उत्पन्न नागश्रेष्ठी का जीव श्री शत्रुजय पर्वत के उपर साठ हजार वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर के वहाँ से पतित हुआ||१३७॥ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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