Book Title: Nabhak Raj Charitram Gujarati
Author(s): Merutungasuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 196
________________ श्रीमेकतमसरिविरचित श्रीनामाकराजाचारितम् / ... तब मुनिबोले, "अयोध्या नगरी में केवली भगवान की पर्षदा में उन के मुख से देवद्रव्य का विनाश करने से प्राणी को कैसे कष्ट भोगने पड़ते है, यह विषय चल रहा था, तब उन्होने तेरे पूर्वजन्मों का संपूर्ण वृत्तान्त सुनाया और तू मेरे ही द्वारा प्रतिबोध पाएगा यह जानकर ही मैं इस वनमें काउसग्ग ध्यान के लिये आया। // 161 // // 16 // मराठी: तेव्हामुनी महाराजम्हणाले, "सध्या अयोध्या नगरी मध्ये आलेल्या केवली भगवंताच्या मुखातून महासभेत "देवद्रव्यांचा विनाश करण्याने प्राण्यांना कशी कशी दु:खे अनुभवावी लागतात." हा अधिकार चालू अगता तुझ्या पूर्वजन्माचा संपूर्ण वृत्तान्त ऐकलावतू फक्त माझ्याकडून च प्रतिबोधित होशील, हे जाणून मी या वनात आली व कायोत्सर्ग ध्यानात स्थित राहिलो॥१६॥ English - At this the monk said that during the auspicious sermon by the revelend Monk (Kevali) at Ayodhaya who said that when a group of intelligent men were reated, that one experiences untold problems and difficulties when he uses the Dev-Dravya, by stressin on his own (king Nabhak's) life's pasable. Now the mnk added that he had know that he was the one who would have to inculate him so that he (kind Nabhak) would rise to this extreme extent. So he had arrived there in this garden and was in deep meditation (kayotsarg). को मे प्राग्भवसम्बन्ध, इति पृष्टे नृपेण सः॥ प्राचीकथन्मुनि ग-गोष्टिकाख्यानमादितः // 16 // अन्वयः- मम प्राग्भवसम्बन्धः कः? इति नृपेण पृष्टे स: मुनि: आदित: नागगोष्ठिकाख्यानं प्राचीकथत् // 16 // विवरणम:- मम प्राग्भवसम्बन्धः पूर्वभवस्य सम्बन्ध: वृत्तान्तः कः' इति नन् पातीति नृपः, तेन नृपेण राज्ञा पृष्टे सति स: मुनिः आदितः आरभ्यनागश्चासौगोष्ठिकश्चनागगोष्ठिकः/नागगोष्ठिकस्यआख्यानंनागगोष्ठिकाख्यानंप्राचीकथत अकथयत्॥१६॥ सरलार्थ:- मम पूर्वभवस्व वृत्तान्तः कः? इति नृपेण पृष्टः मुनि: आदितः आरभ्य नागगोष्ठिकस्य आख्यानम् अचीकथत् / / 16 / / ગુજરાતી:- નૃપતિએ પુછયું કે- “સ્વામિન! મારા પૂર્વભવનો શો વૃત્તાન્ત છે તે કપા કરી જણાવો. ત્યારે શાંત મુદ્રા ધારી તેમજ પરોપકારમાં જ નિરંતરપરાયણ મુનિરાજે નાગગોષિકના ભવથી આરંભી અંત સુધી સર્વવૃત્તાન જણાવ્યો. 163 HOMEER152]

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