Book Title: Nabhak Raj Charitram Gujarati
Author(s): Merutungasuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 228
________________ | श्रीमेरुतुजाहिविरचित श्रीनामाकराजाचरितम् किया जिनालय का निर्माण कार्य पूर्ण किया। इस तरह प्रायश्चित्त करके शुद्धात्मा बना हुआ वह मृत्युपा कर सौधर्म देवलोक में देव बना।।१९६॥ मराठी:- पूर्वजन्मी देवद्रव्याचा विनाश करण्याने कुष्ठरोग झालेला चित्रपुरी नगरीचा राजा चन्द्रादित्य, जो मुनिराजांच्या म्हणण्याप्रमाणे परमेष्ठी महामंत्राचे प्यान परून सहा महिन्यातच पूर्णनिरोगी होऊन कांचन समान कांतियुक्त झाला. त्याने चित्रकूटच्या शिखरावर शुरु केलेले जिनालय पूर्ण केले. अशा त-हेने प्रायश्चित्त करून शुखात्मा झालेला तो चन्द्रादित्य मृत्यु पावला, व सौधर्म देवलोकात देव झाला.||१९६॥ English :- Now the king Chandraditya, who in his past life had wrongly utilized God's wealth and thus had achieved a leprous figure, has got his lustrous self in just six moths after meditating on the Navkar Mantra, on the advice of the monk. He then had completed building a Jain temple on the acme of the mount of Chitrakut in the city of Chtrepuri. He then. who had changed a new leaf, became a God in Saudharme dev-lok, after his death. त्वं तत्रैव भवे मूर्त - पुण्यवज्निनमन्दिरम् // पातयित्वा - पुरस्याऽस्य, परितो दुर्गमातनोः॥१९७॥ अन्वयः- त्वं तत्र एव भवे मूर्तपुण्यवत् जिनमन्दिरं पातयित्वा अस्य पुरस्य परित: दुर्ग आतनोः॥ विवरणम्:- हेनाभाक राजन्। त्वं तत्रैव तस्मिन् एव भानो: भवे मूर्त च तत् पुण्यं च मूर्तपुण्यं, मूर्तपुण्येन तुल्यं मूर्तपुण्यवत् जिन मन्दिरं जिनमन्दिरं पातयित्वा अस्य पुरस्य परित: दुर्ग आतनो: अकरोः॥१९७॥ सरलार्ष:- हे नाभाका त्वं तस्मिन् भानोः भवे मूर्तपुण्यमिव जिनालयं पातयित्वा अस्य पुरस्व परितः दुर्ग प्राकारम् अकरोः / / 197|| ગુજરાતી:- હે નાભાકરાપા! તું ભાનુના ભવમાં મુસ્થલ ગામમાં મુખી હતો તેજ ભવમાં તેં સાક્ષાત પુયસ્વરૂપ જિનમંદિરને પાડી નાખી ગામની ચારે બાજુ કિલ્લો બનાવ્યો હતો. 197 LOK ****[14] *

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