Book Title: Nabhak Raj Charitram Gujarati
Author(s): Merutungasuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 268
________________ श्रीमेकअशिक्षिथित श्रीनामाकराणान्यापितम्। सरलार्थ:- अथवा विषादेन अलम्। अहं श्रीशत्रुजवस्य नावकं श्री ऋषभदेवं नत्वा भोजनं पानकम् आदास्ये वाहीष्यामि // 240 / / ગુજરાતી:- અથવા વિશેષ છેદ કરવાથી શું વળવાનું છે? શ્રી શત્રુંજય તીર્થના અધિરાજ ભગવાન શ્રી આદીશ્વર પ્રભુને વંદન કર્યા બાદ હું ભોજન અને જલ વાપરીશ 240 हिन्दी :- अथवा ज्यादा दु:खी होने से क्या होनेवाला है? मैं श्री शत्रुजय तीर्थ के अधिराज भगवान श्रीआदीश्वर प्रभु को वंदन करने के बाद ही भोजन और जल ग्रहण करूंगा।॥२४०|| मराठी :- अथवा ज्यादा दु:ख करून काय होणार? श्री शत्रुजय तीर्थाचे अपिराज भगवान श्री आदीश्वर प्रभूना नमस्कार करून मी अन्न पाणी घेईन.।।२४०।। English :- He now pacified himself saying that it is fruitless to feel sad and low during such a circumstance. So he vowed that he shall now only accept food and water, after he has paid his homage to the potentatus divine power of the mount of Shree Satrunjay, Lord Aadishwar. निश्चित्येत्यनुपानत्क: क्षरद्रक्ताकुलक्रमः॥ तप:क्रान्तस्तृषाक्लान्त: परिश्रान्त: क्षुधादितः // 24 // मध्यालातपसन्तप्तवालुकाभिः पथि ज्वलन्। अनिर्विण्णमना देवध्यानादेव चचाल सः ॥२४२॥युग्मम।। अन्वय:- इति निश्चित्य अनुपानत्क: क्षरद्रक्ताकुलक्रम: तप:क्रान्त: तृषाक्लान्त: परिश्रान्त: क्षुधादितः // 24 // मध्यालातपसन्तप्तवालुकाभिः पथि ज्वलन् अनिर्विण्ण-मना: स देवध्यानादेव चचाल // 242 // विवरणम्:- इति श्रीऋषभदेवं नत्वैव भक्तपानकमादास्ये इति निश्चित्य नियमं गृहीत्वा न विद्यते उपानहौ यस्य सः अनुपानत्क: पादत्राणरहितः, क्षरत्च तद् रक्तं च क्षरद्रक्तम्। क्षरद्रक्तेन आकुलौ क्रमौ पादौ यस्य सःक्षरवक्ताकुलक्रमः सवदुधिरव्याकुलपादः, तपसा आतपेन क्रान्त: तप:क्रान्त: आतपपीडितः, तृषया पिपासया आक्लान्त: तृषाक्लान्त: L** **224] HER E

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