Book Title: Nabhak Raj Charitram Gujarati
Author(s): Merutungasuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 245
________________ शीमिरुतुझसरिविरशिता श्रीनामाकराजारितम् / हिन्दी :- श्री शत्रुजय तीर्थ दृष्टिगोचर होने पर तुरन्त ही अपने सैन्य को वहीं रुका कर, शरीर से पवित्र होकर तीर्थ के सामने कुछ कदम आगे जाकर, सर्व संघसहित, अरिहंत प्रभु की प्रतिमाबैठाकर उसका प्रक्षालन करके, सभी सामग्रियोंसे विधिपूर्वक पूजा की||२१५॥ मराठी :- श्री शत्रंजव तीर्थ रष्टीस पडल्यावर लगेच आपल्या सैन्याला तेथेच थांबवून, शरीराने शुद्ध होऊन, तीर्थाच्या समोर काही पाऊल पुढे जाऊन, सगळ्या संपासोबत अरिहंत प्रभूची प्रतिमा बसवून, तिचे प्रक्षालन करून नंतर पूजेच्या समवा सामवींनी विधिपूर्वक पूजा केली.|२१|| English :- When the mount of Satrunjay was discernible, he atonce left his army behind, cleansed himself bodily and walking a little ahead towards the mount, installed a statue of Lord Aarihant in the presence of the association (Sangh). He then performed the religious rites (puja) in honour of Lord Aarihant in a ceremonial ordinance.. स्वर्णरूप्ययवै रत्नस्थालेऽथो मङ्गलाष्टकम् // ' आलिख्याऽष्टोत्तरशतवृत्तै: सानन्दमस्तवीत्।।२१६॥ अन्वयः- अथो रत्नस्थाले स्वर्णरूप्ययवैः मङ्गलाष्टकम् आलिख्य अष्टोत्तरशतवृत्तै: सानन्दम् अस्तवीत् // 21 // विवरणम्:- अथो अनन्तरं रत्नानांस्थाल: रत्नस्थाल: तस्मिन्रत्नस्थाले स्वर्णस्य रूप्यस्यचयवा: स्वर्णरूप्ययवाः, तै:स्वर्णरूप्ययवैः मङ्गलानामष्टकमङ्गलाष्टकम् आलिख्य विरचय्य अष्टौ उत्तराणि यस्य तद् अष्टोत्तरमा अष्टोत्तरम् चतत्शतंच अष्टोत्तरशतम्। अष्टोत्तरशतं वृत्तानि छन्दांसि अष्टोत्तरशतवृत्तानि, तै: अष्टोत्तरशतवृत्तैः अष्टोत्तरशतछन्दोभिः (श्लोकै:) आनन्देन सह यथा स्यात् तथा सानन्दम् अस्तवीत् अस्तीत् // 216 // सरलार्थ:- अनन्तरं रत्नस्थाले सुवर्णस्य रौप्यस्य च ववैः अष्टौ मङ्गलानि विरचय अष्टोत्तरशतश्लोकै: अस्तौषीत् // 216 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320