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३४.३
विसाह
. ... बह करण यहां तीनप्रकारका होता है । प्रथम अधःप्रवृत्त करण, द्वितीय अपूर्वकरण और तृतीय अनियति पाए । से तीनोंकाना . मश: होते हैं' ।। अर्थात् प्रथमोपशमुसमयक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीवके अन्तःप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण और अनिवृसिकरणके भेदसे तीनप्रकारकी विशुद्धियां होती हैं । ....
आगे तीनोंकरणोंके कालका अल्पबहुत्वसहित कथन करते हैं. अंतीमुहुत्तकाला तिरिणवि करणा हवंति पत्तेयं । .
उवरीदो युणियकमा कमेण संखेजरूषेण ॥३॥ .. अर्थ-तीनों वारणों में से प्रत्येककरणका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण. काल होता है, किन्तु उपरसे नीचके कारणों का काल संख्यातगुणा क्रम लिये हुए है.. F... . . विशेषार्थ- अक्षाप्रयुत कारगा, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन तीनों कारागों में से प्रत्येकः काका काल अन्तर्मुहूर्त है। इसमें भी अतिवृत्तिकरणका काल 11. है, गरी मामाच्या या काल है, उससे संख्यातगुणा ससकरणका कारन ।
बटुन पद हैं । . . . . असामानर अधःप्रवृत्तकरणका निरुक्तिपूर्वक कथन करते हैं
'जम्हा हटिमभावा उरिमभावहिं सरिसगा होतिः। नम्हा पढमं करणं भधापवत्तोत्ति णिदिट्ठ ॥३५।।
अर्थ-क्योंकि अबस्तन (नीचके) भाव उपरितनभावोंके साथ साग ।। है. अतः प्रथमकरणको अधःप्रवृत्तकरण कहा गया है। ... '
विशेषार्थ-प्रथमकरणाम विद्यमानजीवके करणपरिणाम अर्थात् उपरितन समयके परिणाम (पूर्व) समयके परिणामोंके समान प्रवृत्त होते हैं वह अधःप्रवन । नकरण में उपशिगसमयके परिणाम नीने" समपाम भी पाय जाने है, क्योंकि
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२. ध. प. ६ प ५१४ ; ज. ध पृ. १२ पृ २३३; क. पा. सु. पृ. ६२१ । ३. व पान | २। १. वि बन पा... . ..गचिता गम्भटसारजीवकाण्डे (गाथा ४८) । . ५. ज. प. पु. १२ पृ. २३ ।