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कातन्त्रव्याकरणम् आदेशों के लिए तथा अय्-अव्-आय-आव् आदेशों के लिए पृथक्-पृथक् चार-चार सूत्र बनाए हैं, क्योंकि इसमें प्रत्याहारप्रक्रिया का आश्रय नहीं लिया गया है । यद्यपि सूत्रों की संख्या अधिक हो जाने से अनपेक्षित शाब्दिक गौरव-सा प्रतीत होता है, तथापि अर्थज्ञान में सरलता से लाघव भी उपपन्न होता है । वस्तुतः समग्र कातन्त्रव्याकरण में अर्थलाघव को ही ध्यान में रखकर सूत्र बनाए गए हैं। __तृतीय पाद में चार सूत्रों द्वारा प्रकृतिभाव या असन्धि का विधान है | पाणिनीय व्याकरण में अनेक सूत्रों द्वारा प्रगृह्यसंज्ञा तथा प्लुत का विधान किया गया है | जिनमें प्रगृह्यसंज्ञा या प्लुत होता है, उनमें प्रकृतिभाव भी उपपन्न होता है | कातन्त्रव्याकरण में विना ही प्रगृह्यसंज्ञा तथा प्लुत का विधान किए सीधे ही उनमें प्रकृतिभावका निर्देश है । संभवतः संक्षेप को ही ध्यान में रखकर ऐसी प्रक्रिया अपनाई गई है । प्रथम सूत्र द्वारा स्वरवर्ण के परवर्ती होने पर ओकारान्त तथा अ-आ-इउ चार निपातों का भी प्रकृतिभाव होता है । जैसे - अहो आश्चर्यम्, अ अपेहि, आ एवं नु तत्, इ इन्द्रं पश्य, उ उत्तिष्ठ । द्वितीय सूत्र से स्वर वर्ण के पर में रहने पर उस द्विवचन का प्रकृतिभाव होता है, जो औरूप से भिन्न हो । अर्थात् द्विवचन 'औ' रूपान्तर को प्राप्त हो गया हो । जैसे- 'अग्नी एतौ, पटू इमो, शाले एते'। यहाँ अग्नि-पटु-शाला आदि शब्दों से प्रथमाविभक्ति-द्विवचन 'औ' प्रत्यय के आने पर 'इ-उ' आदेश तथा सवर्णदीर्घ या गुण आदेश प्रवृत्त होता है | उनसे पर में स्वरादि सर्वनामों के रहने पर पाणिनीय व्याकरण के अनुसार पहले प्रगृह्यसंज्ञा होगी - "ईदूदेद् द्विवचनं प्रगृह्यम्" (पा० १।१।११) से और तब "प्लुतप्रगृह्या अचि नित्यम्" (पा० ६।१।१२५) से प्रकृतिभाव । कातन्त्र में सीधे प्रकृतिभाव के विधान से लाघव स्पष्ट है । प्रकृतिभाव की व्यवस्था न होने पर 'अग्नी एतौ' में "इवर्णो यमसवर्णे न च परो लोप्यः" (१।२।८) से ई को य् आदेश, 'पटू इमौ' में "वमुवर्णः" (१।२।९) से ऊ को व् आदेश एवं 'शाले एते, माले इमे' में 'ए अय्" (१।२।१२) सूत्र से ए को 'अय्' आदेश हो जाता |
तृतीय सूत्र द्वारा ‘अमी' रूप बहुवचन का प्रकृतिभाव होता है, यदि कोई स्वर पर में रहे तो | जैसे - 'अमी अश्वाः , अमी एडकाः' । यहाँ कलापसूत्र "बहुवचनममी" (१।३।३) में बहुवचन के निर्देश के साथ 'अमी' पद पठित है । अतः प्रकृत सूत्र केवल 'अमी' में ही प्रवृत्त होता है 'अमू' में नहीं । पाणिनि ने 'ईदूदेद् द्विवचनं प्रगृह्यम्" (१।१।११) में द्विवचन का उल्लेख किया है, परन्तु “अदसो